Here is an essay on ‘Indian Defense System’. Find paragraphs, long and short essays especially written for school and college students.

भारत का विश्व की शांति एवं सुरक्षा में दृढ विश्वास है । इसलिए भारत राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को पारस्परिक विचार विमर्श तथा शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाने का सदैव प्रयास करता रहा है ।

भारत इसी नीति का अनुसरण करने की अपेक्षा अपने पड़ोसी देशों से भी रखता है । भारत को अपनी सुरक्षा की चिंता है अत: उसने अपनी रक्षा व्यवस्था एवं सेनाओं को सुदृढ़ किया है । विश्व देशों के अनावश्यक आक्रमणों के कारण आज देश की रक्षा व्यवस्था का महत्व और भी बढ गया है ।

एक शक्तिशाली राष्ट्र ही विदेशी आक्रमणों से अपनी सीमाओं की रक्षा कर सकता है तथा विवादों का सौहार्द्रपूर्ण और सम्मानजनक हल निकाल सकता है । अत: उपरोक्त कारणों से भारत में एक सुदृढ़ रक्षा व्यवस्था स्थापित की गई है तथा शक्तिशाली सशस्त्र सेनाओं का गठन किया गया है । भारत के राष्ट्रपति तीनों सेनाओं के प्रमुख सेनापति होते हैं ।

भारतीय रक्षा सेनाओं का गठन इस प्रकार है:

1. थल सेना:

भारतीय थल सेना विश्व की प्रमुख एवं शक्तिशाली सेनाओं में से एक है । भारत को अपनी सुसंगठित, सुसज्जित, अनुशासित एवं समर्पित थल सेना पर गर्व है । इस सेना का मुख्यालय नई दिल्ली में है । इसका सर्वोच्च अधिकारी थल सेना अध्यक्ष होता है जिसका पद जनरल के समकक्ष होता है ।

थल सेना के कई अंग होते हैं जैसे: पैदल सेना, सवार (टैंक), तोपखाना (गन), आयुध (शस्त्र निर्माण), व्हीकल, मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि । थल सेना को पांच क्षेत्रों (कमान) में संगठित किया गया है: केन्द्रीय, पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी तथा दक्षिणी कमान । प्रत्येक कमान का अलग-अलग मुख्य अधिकारी होता है, ये अपने-अपने क्षेत्र के प्रति उत्तरदायी होते हैं । ये अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल पद (रैंक) के होते हैं ।

2. नौ सेना:

भारत एक प्रायद्वीप है, इसकी सीमाएं तीन नौ सेना में अधिकारी वर्ग के दिशाओं से जल को स्पर्श करती हैं । भारत की समुद्री सीमा काफी विस्तृत है । पूर्व दिशा में बंगाल की खाडी, पश्चिम दिशा में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागर का क्षेत्र स्थित है । अत: विशाल समुद्री सीमाओं की रक्षा हेतु एक सुगठित व शक्तिशाली नौ सेना की आवश्यकता होती है ।

भारत में इसी आवश्यकता के अनुरूप एक सुदृढ़ नौ सेना का गठन किया गया है । नौ सेना का सर्वोच्च अधिकारी नौ सेना अध्यक्ष (एडमिरल) होता है । नौ सेना के संगठन को तीन क्षेत्रीय कमानों में विभक्त किया गया है जो इसके मुख्य प्रशिक्षण केन्द्र भी हैं ।

ये इस प्रकार हैं:

1. पूर्वी नौ सेना कमान-विशाखापट्‌टनम,

2. पश्चिमी नौ सेना कमान-मुंबई एवं

3. दक्षिणी नौ सेना कमान-कोच्चि (कोचीन) ।

प्रत्येक कमान का अलग-अलग मुख्य अधिकारी हैं । ये अधिकारी वाइस एडमिरल पद (रैंक) के होते हैं । नौ सेना का मुख्य कार्यालय नई दिल्ली में है ।

भारतीय नौ सेना के प्रमुख युद्धपोत इस प्रकार हैं:

i. आई॰एन॰एस॰

ii. नीलगिरि

iii. हिमगिरि

iv. देवगिरि

v. तारागिरि

vi. विन्ध्यागिरि देशपोत

vii. आई॰एन॰एस॰ गोदावरी ।

नौ सेना में सर्वेक्षण पोत, मस्तीयान तथा वायुयान वाहक पोत हैं । इनके अलावा दो जहाजी बेडे भी हैं: एक पश्चिमी तथा दूसरा पूर्वी जहाजी बेड़ा । ये दोनों बेडे समुद्र में गश्त लगाते हैं । कोलकाता व गोवा में शिपयार्ड और विशाखापट्‌टनम में जहाज बनाये जाते है ।

इनके अलावा शिपयार्डों में जलपोत, पनडुब्बी व छोटे-छोटे जलयान भी निर्मित किये जाते है । भारतीय नौ सेना का एक नवीन संचालन केन्द्र आई॰एन॰एस॰ कादम्बा कारवार में स्थापित किया गया है । यह गोवा से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।

3. वायु सेना:

किसी भी राष्ट्र की रक्षा व्यवस्था में वायु सेना की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । युद्ध काल मे आक्रमणकारी देश के प्रमुख सैनिक ठिकानों पर बमबारी करना एवं उनका यातायात, संचार तंत्र नष्ट करना वायुसेना का प्रमुख कार्य है ।

थल सेना को युद्ध भूमि में शस्त्र एवं अन्य युद्ध सामग्री तथा खाद्य पहुंचाना भी वायु सेना का कार्य है । वायु सेना नभ से देश की सीमाओं की निगरानी करती है । भारतीय वायु सेना में 1000 से अधिक हवाई जहाज और हेलीकाप्टर हैं ।

जिनमें मुख्य हैं:

i. केनवेश हन्टर,

ii. अजीत,

iii. किरण,

iv. मिग 21

v. मिग 23

vi. मिग 25

vii. मिग 28

viii. जगुआर,

ix. मिराज 2000

भारतीय वायुसेना का मुख्यालय नई दिल्ली में है । इसके छ: प्रमुख कमान एवं एक रख-रखाव कमान (नागपुर-महाराष्ट्र) में है ।

वायु सेना के छ: प्रमुख कमान (क्षेत्र) इस प्रकार है:

i. पूर्वी (शिलांग-मेघालय)

ii. पश्चिमी (सुब्रोतो पार्क-नई दिल्ली)

iii. मध्य (इलाहाबाद-उत्तरप्रदेश)

iv. दक्षिणी (तिरुवनंतपुरम-केरल)

v. दक्षिणी-पश्चिमी (गांधी नगर-गुजरात)

vi. प्रशिक्षण (बंगलौर-कर्नाटक) ।

इन कमानों के अलग-अलग मुख्य अधिकारी हैं, जो एयर मार्शल रैंक के होते हैं । किसी भी राष्ट्र का यह प्रमुख दायित्व है कि वह अपने नागरिकों की विदेशी आक्रमणों से रक्षा करे । नागरिकों का भी यह कर्तव्य है कि संकटकाल में राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता की सुरक्षा करे ।

सेनाओं का गठन इसलिए किया जाता है कि वह देश की स्वतंत्रता एवं सम्प्रभुता की रक्षा करे । भारतीय सेनाओं का कार्य इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि भारत एक विशाल देश है जिसकी विस्तृत सीमाएं पाकिस्तान, चीन, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार आदि देशों की सीमाओं को स्पर्श करती है । भारतीय सेना चीन, रूस, दक्षिण, कोरिया के बाद सबसे बड़ी है ।

शांतिकाल में रक्षा सेनाओं का योगदान:

युद्ध एवं आक्रमणों से देश की रक्षा के अतिरिक्त लगातार हो रही विघटनकारी एवं आतंकवादी गतिविधियों का सामना भी सेना को करना होता है । रक्षा सेना शांतिकाल में समाज सेवा के अनेक प्रकार के कार्य करती है जैसे: बाढ़, भूकम्प, अन्य प्राकृतिक प्रकोपों व बड़ी दुर्घटनाओं के समय पर राहत कार्य करना ।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व के विभिन्न देशों में शांति स्थापित करने के कार्यों में भी भारतीय सेना ने सहायता की है । हमारी सेनाओं द्वारा कोरिया, गाजापट्‌टी, लेबनान, कांगो, यमन आदि स्थानों में किये गए कार्यों की सराहना की गई है । इस प्रकार राष्ट्र की सुरक्षा वहाँ के नागरिकों की जागरूकता त्याग समर्पण तथा शक्तिशाली सेना पर निर्भर है ।

रक्षा सामग्री का उत्पादन:

देश की सुरक्षा हेतु अनेक प्रकार की रक्षा सामग्री की आवश्कता होती है । रक्षा सामग्री का उत्पादन शासकीय विभाग और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा किया जाता है । शासकीय विभागों द्वारा संचालित आयुध कारखानों में शस्त्रों, टैंकों, वाहनों, गोला-बारूद आदि का निर्माण किया जाता है ।

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में जल-पोतों, वायुयानों, बुलडोजरों, मशीनों के कलपुर्जे, संचार उपकरण आदि सामग्री का निर्माण होता है । अपने देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न बनाने हेतु यहाँ परमाणु संयंत्र भी स्थापित किये गए हैं । तारापुर (महाराष्ट्र) व कलपक्कम (तमिलनाडु) इसके प्रमुख केन्द्र हैं ।

भारत में रक्षा पंक्ति मजबूत करने के लिए प्रक्षेपास्त्रों (मिसाइल) का निर्माण किया है, जैसे अग्नि, पृथ्वी, त्रिशूल, नाग, आकाश, अस्त्र व ब्रह्मास्त्र आदि । भारत 1974 व 1998 में परमाणु बम का परीक्षण विस्फोट कर अपनी परमाण्विक शक्ति का परिचय सम्पूर्ण विश्व को दे चुका है ।

युद्ध का खतरा केवल युद्ध क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहता है । हवाई हमले और गोलीबारी से अनेक नगर नष्ट हो जाते हैं जीवन और सम्पत्ति को हानि हो जाती है इसीलिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक नागरिक को प्राथमिक चिकित्सा, नर्सिंग ट्रेनिंग लेनी चाहिए । उन्हें यह जानकारी होना चाहिए कि हमें ब्लेक आउट, हवाई हमले और आग लगने पर क्या करना चाहिए ।

विद्यालयों के छात्र छात्राओं में अनुशासन व सैन्य अभिरुचि जागृत करने हेतु नेशनल कैडेट कोर (एन॰सी॰सी॰) का गठन किया गया है । इसके अलावा प्रादेशिक सेना का भी गठन किया गया है । यह उन नागरिकों की सेना है जो देश की रक्षा में भाग लेना चाहते हैं ।

अपने अवकाश के समय में 18 से 35 वर्ष की आयु के बीच का कोई भी नागरिक शस्त्र प्रशिक्षण ले सकता है । युद्धकाल, संकट और विपत्ति का समय होता है । समाज विरोधी तत्व इस परिस्थिति का लाभ उठाते हैं । अत: नागरिकों का कर्तव्य है कि इन असामाजिक तत्वों से सतर्क रहना चाहिए तथा सरकार की सहायता करनी चाहिए ।